दो मुखी रुद्राक्ष

दो मुखी रुद्राक्ष को भगवान शिव और मां पार्वती का रूप कहा जाता है। इस रुद्राक्षण को धारण करने वाले व्‍यक्‍ति की सभी समस्‍याएं खुद ईश्‍वर दूर करते हैं। वैवाहिक सुख की प्राप्‍ति के लिए भी इस रुद्राक्ष को धारण किया जाता है।माना जाता है कि 2 मुखी रुद्राक्ष आपके जन्म कुंडली के अनुसार, यदि चंद्रमा चंद्रमा जानबूझकर स्थिति में है, तो यह आपके जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। यह आपको बेचैन कर सकता है, एकाग्रता में कमी कर सकता है और जीवन में बुरी किस्मत भी ला सकता है।(दो मुखी रुद्राक्ष) जीवन में सद्भाव लाने, प्रेमियों और रिश्तेदारों के बीच एक अच्छी समझ को बढ़ावा देने के लिए माना जाता है।भले ही रुद्राक्ष का ज्योतिष से सीधा संबंध नहीं है, लेकिन भगवान शिव के आशीर्वाद से इसका ज्योतिषीय लाभ होता है। एक शक्तिशाली तत्व होने के नाते, एक विशेषज्ञ ज्योतिषी से परामर्श करने के बाद इसे पहनना सुनिश्चित करना चाहिए।भले ही रुद्राक्ष का ज्योतिष से सीधा संबंध नहीं है, लेकिन भगवान शिव के आशीर्वाद से इसका ज्योतिषीय लाभ होता है। एक शक्तिशाली तत्व होने के नाते, एक विशेषज्ञ ज्योतिषी से परामर्श करने के बाद इसे पहनना सुनिश्चित करना

दो मुखी रुद्राक्ष

दो मुखी रुद्राक्ष को भगवान शिव और मां पार्वती का रूप कहा जाता है। इस रुद्राक्षण को धारण करने वाले व्‍यक्‍ति की सभी समस्‍याएं खुद ईश्‍वर दूर करते हैं। वैवाहिक सुख की प्राप्‍ति के लिए भी इस रुद्राक्ष को धारण किया जाता है।माना जाता है कि 2 मुखी रुद्राक्ष आपके जन्म कुंडली के अनुसार, यदि चंद्रमा चंद्रमा जानबूझकर स्थिति में है, तो यह आपके जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। यह आपको बेचैन कर सकता है, एकाग्रता में कमी कर सकता है और जीवन में बुरी किस्मत भी ला सकता है।(दो मुखी रुद्राक्ष) जीवन में सद्भाव लाने, प्रेमियों और रिश्तेदारों के बीच एक अच्छी समझ को बढ़ावा देने के लिए माना जाता है।भले ही रुद्राक्ष का ज्योतिष से सीधा संबंध नहीं है, लेकिन भगवान शिव के आशीर्वाद से इसका ज्योतिषीय लाभ होता है। एक शक्तिशाली तत्व होने के नाते, एक विशेषज्ञ ज्योतिषी से परामर्श करने के बाद इसे पहनना सुनिश्चित करना चाहिए।भले ही रुद्राक्ष का ज्योतिष से सीधा संबंध नहीं है, लेकिन भगवान शिव के आशीर्वाद से इसका ज्योतिषीय लाभ होता है। एक शक्तिशाली तत्व होने के नाते, एक विशेषज्ञ ज्योतिषी से परामर्श करने के बाद इसे पहनना सुनिश्चित करना

https://www.poojanpaath.com/
मंगल पूजा

मंगल ग्रह या मंगल ज्योतिष के अनुसार बिजली, ताकत, साहस और आक्रामकता का ग्रह है |ज्योतिष की दृष्टि से मंगल ग्रह को एक क्रूर ग्रह के रूप में देखा जाता है, तथा मंगल ग्रह को भगवान के रूप में माना जाता है | मंगल ग्रह आकाश में लाल रंग के खगोलीय शरीर के साथ वर्णित है | मंगल ग्रह के प्रकृति के वर्णन में उसे क्षत्रिय माना गया है, एक सुंदर और छोटे कद का व्यक्तित्व लिए है जिसके चार हाथ है जिनमे वह हथियार लिए है | शादी के संदर्भ में मंगल ग्रह की स्थिति का सर्वोच्च महत्व है क्योंकि यह आक्रामकता का प्रतीक है | पति, वैवाहिक गांठ, लिंग आदि में मंगल की स्थिति प्रभावित करती है | मंगल ग्रह विवाह की सकारात्मक या नकारात्मक स्थिति को प्रभावित करने के लिए जाना जाता है | मंगल दोष एक ज्योतिषीय स्थिति है जो तब होता है यदि वैदिक ज्योतिष के जन्मांग चक्र के 1, 4, 7, 8 और 12वे घर में मंगल हो  ऐसी स्थिति में पैदा हुआ जातक मांगलिक कहा जाता है | यह स्थति विवाह के लिए अत्यंत विनाशकारी मानी गयी है | संबंधो में तनाव, कार्य में असुविधा तथा नुक्सान और व्यक्ति की असामायिक मृत्यु का कारण मंगल को माना गया है | मंगल पूजा के द्वारा मंगल ग्रह को प्रसन्न किया जाता है,तथा उसके विनाशकारी प्रभावों को नियंत्रित किया जाता है, तथा सकारात्मक प्रभावों को बढ़ाया जाता है|
मंगल पूजा और अनुष्ठान का उद्देश्य बाधाओं को हटाना है, जो मंगल दोष की शांति करके प्राप्त किया जाता है | विशिष्ट पूजा के द्वारा हम हानिकर बल से छुटकारा, सुख, शांति और समृद्धि पा सकते है | नए उद्यम शुरू करने में सकारात्मक कंपन पैदा करने के लिए, घर, नौकरी, व्यवसाय में बाधाएं दूर करने के लिए, शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए, नेतृत्व कौशल बढ़ाने के लिए हम साधना करके लाभ बढ़ा सकते हैं | सामान्य तरीकों में ध्यान, मंत्र जप, शांति, प्रार्थना शामिल हैं | उपवास या भगवान का नाम जप, धर्मदान. ये मनोरथ से किया जा सकता है | मंगल पूजा, मंगल ग्रह के लिए समर्पित है | मंगल शांति पूजा ऋण, गरीबी और त्वचा की समस्याओं से राहत के लिए लाभकारी है | इन कार्यों के परिणाम के लिए सक्षम हो हमें और अधिक गहरा आध्यात्मिक पूजा द्वारा लागू ऊर्जा आत्मसात करने के लिए मंगल पूजा करने की ज़रूरत है |

Read More
https://www.poojanpaath.com/
https://www.poojanpaath.com/
कालसर्प पूजा

माना जाता है यह पूर्वजन्म में सर्प हत्या की हो तो उसके कारण कालसर्प दोष बनता है। ज्योतिष के अनुसार जब सभी ग्रह राहु और केतु के बीच में आ जाते हैं तो कुंडली में कालसर्प योग का निर्माण होता है। कालसर्प दोष का पता आप किसी योग्य ज्योतिष से कुंडली जांच करके करवा सकते हैं। इसके अलावा आप अपने जीवन में कुछ लक्षणों पर ध्यान देकर भी जान सकते हैं कि आपके जो कष्ट है वो कालसर्प दोष के कारण हैं या नहीं।
कालसर्प दोष के लक्षण

जीवन के हर क्षेत्र में असफलता का सामना करना पड़ता है।
घर में मांगलिक कार्य नहीं हो पाते हैं।
संतान प्राप्ति में बाधा आती है, संतान की उन्नति नहीं होती है।
परिवार में खुशियां नहीं रहती हैं हमेशा तनाव की स्थिति बनी रहती है।v सगे संबंधी ही धन के मामले में धोखा करते हैं।v हमेशा रोगों से घिरे रहते हैं, स्वास्थ सही नहीं रहता है।
व्यापार में अड़चने बनी रहती हैं, लगातार घाटे का सामना करना पड़ता है।
आते हैं ऐसे स्वप्न
सपने में मुंडन, बारात, अपने आपको नदी में डूबते हुए देखना, और स्वप्न में अंगविहीन व्यक्ति को देखना।
सपने में मृत व्यक्ति आपसे कुछ मांगे।

यदि आप भी लगातार इस तरह की परेशानियों का सामना कर रहे हैं तो आपको तुरंत किसी उचित ज्योतिष से कुंडली जांच करवाकर इसका निवारण करवाना चाहिए। इसके अलावा चांदी का सर्प बनवाकर धर्मस्थान पर दान कर सकते हैं

Read More
https://www.poojanpaath.com/
https://www.poojanpaath.com/
वास्तु दोष

अनेन विधिनां सम्यग्वास्तुपूजां करोति य:। आरोग्यं पुत्रलाभं च धनं धान्यं लभेन्नदर:॥ अर्थात्ï इस विधि से सम्यक प्रकार से जो वास्तु का पूजन करता है, वह आरोग्य, पुत्र, धन, धन्यादि का लाभ प्राप्त करता है। ह प्रवेश के पूर्व वास्तु शांति कराना शुभ होता है। इसके लिए शुभ नक्षत्र वार एवं तिथि इस प्रकार हैं- शुभ वार- सोमवार, बुधवार, गुरुवार, व शुक्रवार शुभ हैं। शुभ तिथि- शुक्लपक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी एवं त्रयोदशी। शुभ नक्षत्र- अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, उत्ताफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, रेवती, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, स्वाति, अनुराधा एवं मघा। अन्य विचार- चंद्रबल, लग्न शुद्धि एवं भद्रादि का विचार कर लेना चाहिए।

Read More
https://www.poojanpaath.com/
https://www.poojanpaath.com/
ग्रहण योग

चंद्र-राहु या सूर्य-राहु की युति को ग्रहण योग कहते हैं।यदि बुध की युति राहु के साथ है तब यह जड़त्व योग है। इन योगों के प्रभाव स्वरुप भाव स्वामी की स्थिति के अनुसार ही अशुभ फल मिलते हैं।वैसे चंद्र की युति राहु के साथ कभी भी शुभ नही मानी जाती है।इस युति के प्रभाव से माता या पत्नी को कष्ट होता है, मानसिक तनाव रहता है, आर्थिक परेशानियाँ, गुप्त रोग, भाई-बांधवों से बैर-विरोध, परिजनों का व्यवहार परायों जैसा होने के फल मिल सकते हैं।अतः शास्त्रीय विधान से शांति अवश्य करवाएं तथा शिव आराधना अवश्य करें।

Read More
https://www.poojanpaath.com/
https://www.poojanpaath.com/
मंगल भात पूजा

इसी प्रकार शनि देव यदि जन्मकुंडली के लग्न, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव, द्वादश भाव में हो या दृष्टिगत भी हो तो कुंडली में मांगलिक योग का परिहार हो जाता है, सभी मांगलिक कुंडलियो में मांगलिक दोष हो ऐसा जरुरी नहीं होता है, लोग व्यर्थ में मांगलिक योग सुन के भयभीत हो जाते है, जबकि मंगल ग्रह तो शुभ कार्य, भूमि, ऋणहरता एवं फल प्रदान करने वाले देवता है, कुंडली में मंगल जब ख़राब होता है तब इन्सान , कुछ दोगल होजाता है , और यही कारन है की वहा अपने जीवन में अक्सर सफल होता है, एसा इन्सान मोम की तरह पिघल ता रहता है , या पत्थर की तरह रहकर हमेंशा दूसरो को चौट देता रहता है ,जब जब मंगल को चन्द्र - सूर्य का साथ नहीं मिलता तब वहा नीच का होजाता है नीच का मंगल सब का शत्रु होता है ,जातक धर्म के विरुध काम करता है या करवाता है , फिर ऐसे जातक की म्रत्यु हतियार या किसी लम्बी बीमारी से होतीहै , कुंडली के कुछ बेठे मंगल ख़राब और कुछ बहुत अच्छे भी होते है|

Read More
https://www.poojanpaath.com/
https://www.poojanpaath.com/
पितृ शांति

1त्रिपिंडी का पूजन होता है विष्णु लोक के पितरों के लिए सात्विक पिंड अर्पण करते हैं जो उनको विष्णुलोक में प्राप्त होता है ब्रह्मलोक के पितरों के लिए राजसी पिंडअर्पण करते हैं जॉन को ब्रह्मलोक में प्राप्त होता हैऔर रूद्र लोग के पितरों के लिए तामसिक अर्पण करते हैं जो उनको रूद्र लोक में प्राप्त होता है इस पूजन के करने से तीनो लोग के पुत्र संतुष्ट होते हैं और कुटुंब परिवार को अच्छा आशीर्वाद प्रदान करते हैं जिससे घर में खुशहाली सुख शांति अ अन्न का धन का लक्ष्मी का भंडार रहता है इस पूजन को अगर कुंडली में दोष नहीं हो तो भी राजी खुशी से भी पितरों की कृपा आशीर्वाद पाने के लिए किया जा सकता है 2 पितृदोष में दूसरे प्रकार से जो पितृदोष होता है जिसको नारायण वली श्राद्ध पूजन कहते हैं यह उन पितरों के लिए होता है जो प्रेत की योनि में भटक रहे होते हैं जो अधोगति में मृत्यु होती है जैसे एक्सीडेंट आत्महत्या सर्प के काटने से करंट से जल में डूब के और अधोगति में जो चले जाते हैं उन पितरों के लिए नारायण बलि का विधान किया जाता है जिससे वह प्रेत की योनि से निवारण होकर पितरों की श्रेणी में आते हैं उनको विष्णु लोक की प्राप्ति होती है3 पितृदोष का तीसरा विधान यह है यह विधान 3 दिनों का होता है इस विधान का नाम नागवली नारायण वलि है इस विधान में पितरों को सर्प की योनि में बहुत सालों तक भटकना पड़ता है क्योंकि सर्प की आयु बहुत लंबी होती है इस विधान में 3 दिनों तक पूजा होती है यह पूजन किस लिए किया जाता है इस पूजन का मुख्य कारण यह है कि जिस परिवार में संतान आदी उत्पन्न नहीं हो रही हो तथा घर में ग्रह कलेश हो रहा हो इस पूजन करने से संतान इत्यादि का सुख प्राप्त किया जा सकता है इस पूजन की अधिक जानकारी के लिए पंडित जी से कॉल पर चर्चा करें यह विधान पितरों का सबसे बड़ा विधान कहा जाता हैपितृदोष और कालसर्पदोष का सबसे प्राचीन स्थान सिद्धवट घाट है यहीं पर पितरों को मुक्ति प्रदान होती है इसलिए पित्र दोष सिद्धवट घाट पर होता है यहां बैकुंठ द्वार है पितरों को वैकुंठ की प्राप्ति होती है

Read More
https://www.poojanpaath.com/
https://www.poojanpaath.com/
चांडाल दोष

बृहस्पति और राहु जब साथ होते हैं या फिर एक दूसरे को किन्ही भी भावो में बैठ कर देखते हो, तो गुरू चाण्डाल योग निर्माण होता है।चाण्डाल का अर्थ निम्नतर जाति है। कहा गया कि चाण्डाल की छाया भी ब्राह्मण को या गुरू को अशुद्ध कर देती है। गुरु चंडाल योग को संगति के उदाहरण से आसानी से समझ सकते हैं। जिस प्रकार कुसंगति के प्रभाव से श्रेष्ठता या सद्गुण भी दुष्प्रभावित हो जाते हैं। ठीक उसी प्रकार शुभ फल कारक गुरु ग्रह भी राहु जैसे नीच ग्रह के प्रभाव से अपने सद्गुण खो देते है। जिस प्रकार हींग की तीव्र गंध केसर की सुगंध को भी ढक लेती है और स्वयं ही हावी हो जाती है, उसी प्रकार राहु अपनी प्रबल नकारात्मकता के तीव्र प्रभाव में गुरु की सौम्य, सकारात्मकता को भी निष्क्रीय कर देता है। राहु चांडाल जाति, स्वभाव में नकारात्मक तामसिक गुणों का ग्रह है, इसलिए इस योग को गुरु चांडाल योग कहा जाता है।जिस जातक की कुंडली में गुरु चांडाल योग यानि कि गुरु-राहु की युति हो वह व्यक्ति क्रूर, धूर्त, मक्कार, दरिद्र और कुचेष्टाओं वाला होता है।ऐसा व्यक्ति षडयंत्र करने वाला, ईष्र्या-द्वेष, छल-कपट आदि दुर्भावना रखने वाला एवं कामुक प्रवत्ति का होता है, उसकी अपने परिवार जनो से भी नही बन पाती तथा वह खुद को अकेला महसूस करने लग जाता है और उसका मन हमेशा व्याकुल रहता है। उपायगुरु चांडाल योग के जातक के जीवन पर जो भी दुष्प्रभाव पड़ रहा हो उसे नियंत्रित करने के लिए जातक को भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए। एक अच्छा ज्योतिषी कुण्डली देख कर यह बता सकता है कि हमे गुरु को शांत करना उचित रहेगा या राहु के उपाय जातक से करवाने पड़ेंगे। अगर चाण्डाल दोष गुरु या गुरु के मित्र की राशि या गुरु की उच्च राशि में बने तो उस स्थिति में हमे राहु देवता के उपाय करके उनको ही शांत करना पड़ेगा ताकि गुरु हमे अच्छे प्रभाव दे सके। राहु देवता की शांति के लिए मंत्र-जाप पुरे होने के बाद हवन करवाना चाहिए तत्पश्चात दान इत्यादि करने का विधान बताया गया है. अगर ये दोष गुरु की शत्रु राशि में बन रहा हो तो हमे गुरु और राहु देवता दोनों के उपाय करने चाहिए गुरु-राहु से संबंधित मंत्र-जाप, पूजा, हवन तथा दोनों से सम्बंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए।

Read More
https://www.poojanpaath.com/
https://www.poojanpaath.com/
महामृत्युंजय जाप

महामृत्युंजय मंत्र का जप क्यों किया जाता है?शास्त्रों और पुराणों में असाध्य रोगों से मुक्ति और अकाल मृत्यु से बचने के लिए महामृत्युंजय जप करने का विशेष उल्लेख मिलता है।महामृत्युंजय भगवान शिव को खुश करने का मंत्र है। इसके प्रभाव से इंसान मौत के मुंह में जाते-जाते बच जाता है, मरणासन्न रोगी भी महाकाल शिव की अद्भुत कृपा से जीवन पा लेता है। बीमारी, दुर्घटना, अनिष्ट ग्रहों के प्रभावों से दूर करने, मौत को टालने और आयु बढ़ाने के लिए सवा लाख महामृत्युंजय मंत्र जप करने का विधान है।जब व्यक्ति जप न कर सके, तो मंत्र जप किसी योग्य पंडित से भी कराया जा सकता है।समुद्र मंथन के बहुप्रचलित आख्यान देवासुर संग्राम के समय शुक्राचार्य ने अपनी यज्ञशाला मे इसी महामृत्युंजय के अनुष्ठानों का उपयोग देवताओं द्वारा मारे गए राक्षसों को जीवित करने के लिए किया था। इसलिए इसे मृत संजीवनी के नाम से भी जाना जाता है। महामत्युंजय मंत्र इस प्रकार है ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!पद्मपुराण में महर्षि मार्कण्डेय ने भी महामृत्युंजय मंत्र व स्त्रोत का वर्णन किया है। इस पुराण में मिले वर्णन के अनुसार महामुनि मृकण्डु के कोई संतान नहीं थी। इसलिए उन्होंने पत्नी सहित कठोर तप करके भगवान शंकर को खुश किया। भगवान शंकर ने प्रकट होकर कहा- तुमको पुत्र प्राप्ति होगी पर यदि गुणवान, सर्वज्ञ, यशस्वी, धार्मिक और समुद्र की तरह ज्ञानी पुत्र चाहते हो, तो उसकी आयु केवल 16 साल की होगी और उत्तम गुणों से हीन, अयोग्य पुत्र चाहते हो, तो उसकी उम्र 100 साल होगी। इस पर मुनि मृकुण्डु ने कहा- मैं गुण संपन्न पुत्र ही चाहता हूं, भले ही उसकी आयु छोटी क्यों न हो। मुझे गुणहीन पुत्र नहीं चाहिए। मुनि ने बेटे का नाम मार्कण्डेय रखा। जब वह 16 वे साल में प्रवेश हुआ, तो मृकुंड चिंतित हुए और उन्होंने अपनी चिंता को मार्कण्डेय को बताया। मार्कण्डेय ने भगवान शंकर को खुश करने के लिए तप किया तो भगवान शंकर शिवलिंग में से प्रकट हो गए। उन्होंने गुस्से से यमराज की तरफ देखा, तब यमराज ने डरकर बालक मार्कण्डेय को न केवल बंधन मुक्त कर दिया, बल्कि अमर होने का वरदान भी दिया और प्रणाम करके चले गए।

Read More
https://www.poojanpaath.com/
https://www.poojanpaath.com/
रुद्राभिषेक पूजा

हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान शिव का पूजन करने से सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूर्ण होती हैं।भगवान शिव को शुक्लयजुर्वेद अत्यन्त प्रिय है कहा भी गया है वेदः शिवः शिवो वेदः। इसी कारण ऋषियों ने शुकलयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से रुद्राभिषेक करने का विधान शास्त्रों में बतलाया गया है यथा रुद्राभिषेक क्यों करते हैं?रुद्राष्टाध्यायी के अनुसार शिव ही रूद्र हैं और रुद्र ही शिव है। रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: अर्थात रूद्र रूप में प्रतिष्ठित शिव हमारे सभी दु:खों को शीघ्र ही समाप्त कर देते हैं। वस्तुतः जो दुःख हम भोगते है उसका कारण हम सब स्वयं ही है हमारे द्वारा जाने अनजाने में किये गए प्रकृति विरुद्ध आचरण के परिणाम स्वरूप ही हम दुःख भोगते हैंरुद्राभिषेक का आरम्भ कैसे हुआ?प्रचलित कथा के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी जबअपने जन्म का कारण जानने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो उन्होंने ब्रह्मा की उत्पत्ति का रहस्य बताया और यह भी कहा कि मेरे कारण ही आपकी उत्पत्ति हुई है। परन्तु ब्रह्माजी यह मानने के लिए तैयार नहीं हुए और दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध से नाराज भगवान रुद्र लिंग रूप में प्रकट हुए। इस लिंग का आदि अन्त जब ब्रह्मा और विष्णु को कहीं पता नहीं चला तो हार मान लिया और लिंग का अभिषेक किया, जिससे भगवान प्रसन्न हुए। कहा जाता है कि यहीं से रुद्राभिषेक का आरम्भ हुआ।संस्कृत श्लोक जलेन वृष्टिमाप्नोति व्याधिशांत्यै कुशोदकै दध्ना च पशुकामाय श्रिया इक्षुरसेन वै। मध्वाज्येन धनार्थी स्यान्मुमुक्षुस्तीर्थवारिणा। पुत्रार्थी पुत्रमाप्नोति पयसा चाभिषेचनात।। बन्ध्या वा काकबंध्या वा मृतवत्सा यांगना। जवरप्रकोपशांत्यर्थम् जलधारा शिवप्रिया।। घृतधारा शिवे कार्या यावन्मन्त्रसहस्त्रकम्। तदा वंशस्यविस्तारो जायते नात्र संशयः। प्रमेह रोग शांत्यर्थम् प्राप्नुयात मान्सेप्सितम। केवलं दुग्धधारा च वदा कार्या विशेषतः। शर्करा मिश्रिता तत्र यदा बुद्धिर्जडा भवेत्। श्रेष्ठा बुद्धिर्भवेत्तस्य कृपया शङ्करस्य च!! सार्षपेनैव तैलेन शत्रुनाशो भवेदिह! पापक्षयार्थी मधुना निर्व्याधिः सर्पिषा तथा।। जीवनार्थी तू पयसा श्रीकामीक्षुरसेन वै। पुत्रार्थी शर्करायास्तु रसेनार्चेतिछवं तथा। महलिंगाभिषेकेन सुप्रीतः शंकरो मुदा। कुर्याद्विधानं रुद्राणां यजुर्वेद्विनिर्मितम्। अर्थात जल से रुद्राभिषेक करने पर — वृष्टि होती है। कुशा जल से अभिषेक करने पर — रोग, दुःख से छुटकारा मिलती है। दही से अभिषेक करने पर — पशु, भवन तथा वाहन की प्राप्ति होती है। गन्ने के रस से अभिषेक करने पर — लक्ष्मी प्राप्ति मधु युक्त जल से अभिषेक करने पर — धन वृद्धि के लिए। तीर्थ जल से अभिषेकक करने पर — मोक्ष की प्राप्ति होती है। इत्र मिले जल से अभिषेक करने से — बीमारी नष्ट होती है । दूध् से अभिषेककरने से — पुत्र प्राप्ति,प्रमेह रोग की शान्ति तथा मनोकामनाएं पूर्ण गंगाजल से अभिषेक करने से — ज्वर ठीक हो जाता है। दूध् शर्करा मिश्रित अभिषेक करने से — सद्बुद्धि प्राप्ति हेतू। घी से अभिषेक करने से — वंश विस्तार होती है। सरसों के तेल से अभिषेक करने से — रोग तथा शत्रु का नाश होता है। शुद्ध शहद रुद्राभिषेक करने से —- पाप क्षय हेतू। इस प्रकार शिव के रूद्र रूप के पूजन और अभिषेक करने से जाने-अनजाने होने वाले पापाचरण से भक्तों को शीघ्र ही छुटकारा मिल जाता है और साधक में शिवत्व रूप सत्यं शिवम सुन्दरम् का उदय हो जाता है उसके बाद शिव के शुभाशीर्वाद सेसमृद्धि, धन-धान्य, विद्या और संतान की प्राप्ति के साथ-साथ सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाते हैं हमारे वैदिक ब्राम्हणो से रुद्राभिषेक सम्पन्न कराया जाता है

Read More
https://www.poojanpaath.com/
© Copyright 2025 by Poojan Paath.All right Reserved. Design By Netspace Software Solution